नई दिल्ली:
भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र ने अपने एक बयान में कहा है "अभी हाल ही में जुलाई माह में जीएम फसलों के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को निर्देश देते हुए आदेश दिया था कि केंद्र सरकार सभी हितधारकों से बात करते हुए राष्ट्रीय जीएम नीति बनाए और इस कार्य को चार माह में पूर्ण करने की सीमा भी निर्धारित की थी. किसान मुख्य हितधारक है इसलिए उसकी राय को राष्ट्रीय जीएम नीति निर्माण में प्रमुख रूप से शामिल किया जाए. लेकिन अभी तक केंद्र सरकार या फिर इसके लिए बनी समिति ने किसान या किसान संगठनों से अभिमत लेने कोई संपर्क नहीं किया है,ऐसे में समिति की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में हैं".
किसान संघ का कहना है कि भारत में जीएम फसलों की आवश्यकता नहीं है. रासायनिक खेती व जहरीला जीएम कृषि,किसान व पर्यावरण के लिए असुरक्षित है. जीएम फसलें जैव विविधता को नष्ट और ग्लोवल वार्मिंग को बढ़ाती हैं. बीटी कपास इसका उदाहरण हैं जिसके फेल होने से किसानों को हुए भारी नुकसान के कारण उन्हें आत्महत्या तक करनी पड़ी थी. भारत को कम यंत्रीकरण,रोजगार सृजन क्षमता वाली कृषि चाहिए,न कि जीएम खेती. अनेक देशों में इस पर प्रतिबंध हैं. इससे साफ है कि किसान संघ जीएम फसलों का पक्षधर नहीं है.
हितधारकों का आरोप है कि सरकार बिना किसी सलाह व प्रभावों का अध्ययन किए बिना खाद्य व पोषण सुरक्षा के नाम पर भारत मे जीएम फसलों की अनुमति देना चाहती हैं. जबकि सर्वोच्च न्यायालय अपने देश,अपनी जलवायु,अपने लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव का विस्तृत अध्ययन व हानि लाभ के परिणाम के निष्कर्ष उपरांत आगे बढ़ने का पक्षधर है.
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