दिल्ली के जामा मस्जिद में रमजान की रौनक.
Ramadan 2025: मुस्लिम समाज का पवित्र महीना रमजान शुरू हो चुका है. 2 मार्च को पहला रोजा रखा गया. रमजान में मुसलमान 30 दिन तक दिनभर उपवास रखते हैं. रोज़े का वक्त सूरज निकलने के बाद से लेकर सूरज डूबने तक का होता है..जिसके बाद कुछ भी खा पी सकते हैं.. रोजेदार ज्यादातर खजूर,नमक या पानी से रोज़ा खोलते हैं जिसके बाद रात में भोजन करते हैं. रमजान के दौरान पांच वक्तों की नमाज के साथ-साथ हर समय अल्लाह की इबादत और दीन-दुखियों की मदद की जाती है. रविवार को रमजान के पहले रोजे के दिन दिल्ली सहित पूरे देश में मुस्लिम समाज के लोग ईदगाह और मस्जिदों में इबादत करते नजर आए. फिर इफ्तार और सेहरी के दौरान भी आपसी एकजुटता दिखी.
लेकिन रमजान की शुरुआत के साथ ही इससे जुड़े कई कंफ्यूजन लोगों के मन में आ जाते हैं. जैसे- क्या थूक निगलने से रोजा टूट जाता है? क्या ऑफिस जाने वाले लोगों के लिए रोज़ा माफ हो सकता है? कितने साल के बच्चों पर रोज़ा अनिवार्य है? गरीबों के लिए क्या किया जाता है? फितरा या ज़कात क्या होता है?
रमजान से जुड़े ऐसे ही भ्रमों पर NDTV ने शिया और सुन्नी स्कॉलरों से विशेष बातचीत की. जिसमें उन्होंने रमजान से जुड़ी कंफ्यूजनों को दूर किया. एनडीटीवी ने सुन्नी स्कॉलर मुफ्ती अरहम झिंझानवी और शिया स्कॉलर मौलाना फसी हैदर से बात की. जिन्होंने तसल्ली से कई चीजों की जानकारी दी.
रोजे रखने के वैज्ञानिक पक्ष शिया स्कॉलर मौलाना फसी हैदर ने कहा डॉक्टर भी कहते हैं कि साल में 30 दिन आप रोजे रखिए,ताकि आप बीमारियों से लड़ सके. रोजे रखने का मतलब है कि अंधकार से बाहर निकलने की कवायद. इससे इंसान का पेट भी बेहतर रहता है और एक तरह से तीस दिन रोजा रखने के बाद शरीर ताज़ा हो जाता है.
इसमें हर किसी को मोहब्बत के साथ रोज़े रखने चाहिए और मिल जुलकर एक साथ खुशी का पर्व मनाना चाहिए,साथ ही फितरा जकात देनी चाहिए जिससे गरीब लोगों को उनका हक पहुंच सके.
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