नई दिल्ली:
पेट्रोल और डीजल की कीमतें आखिर क्यों आम जनता की जेब पर भारी पड़ रही हैं. सरकार ने हाल ही में स्पेशल एडिशनल एक्साइज ड्यूटी (SAED) बढ़ाई है. पेट्रोल और डीजल की कीमतों में एक्साइज ड्यूटी 2-2 रुपए प्रति लीटर की दर से बढ़ोतरी का ऐलान किया गया है. हालांकि,उपभोक्ताओं को इसकी सीधी मार नहीं पड़ेगी,लेकिन इससे सरकार को 5,000 से 7,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी होगी,जिससे LPG पर होने वाले घाटे की भरपाई की जाएगी.
केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी के अनुसार,तेल कंपनियों को LPG पर हो रहे अंडर-रिकवरी को कवर करने के लिए यह कदम उठाया गया है. यह फैसला तब आया है जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें घटकर $63-64 प्रति बैरल तक आ गई हैं,जो कि मार्च के अंत में $77 प्रति बैरल थीं.
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब कच्चे तेल की कीमतें इतनी कम हो गई हैं,तो फिर भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 95 और 88 रुपये प्रति लीटर क्यों बनी हुई हैं? आइए जानते हैं क्या हैं इसके पीछे के कारण.
पेट्रोल का ब्रेकअप (दिल्ली में):
बेस प्राइस: ₹55.09बेसिक एक्साइज ड्यूटी: ₹1.4रोड और इंफ्रा सेस: ₹5एग्री इंफ्रा सेस: ₹2.5स्पेशल एडिशनल एक्साइज ड्यूटी: ₹5कमीशन: ₹4.39VAT: ₹15.4कुल कीमत: ₹94.77
इसी तरह,डीजल की कीमत 87.67 रुपये प्रति लीटर है,जिसमें बेस प्राइस सिर्फ 56.03 रुपये है. यानी बाकी का करीब 31.64 रुपये टैक्स और ड्यूटी में चला जाता है.
बड़ी बातें
पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 2 रुपये प्रति लीटर बढ़ी.सरकार ने हालांकि अभी तेल के नाम में बढ़ोती नहीं की है.सब्सिडी वाले उज्ज्वला समेत रसोई गैस का सिलेंडर महंगा.दिल्ली में 14.2 किलो का उज्ज्वला सिलेंडर अब 553 का.दाम बढ़ने से पहले दिल्ली में उज्ज्वला सिलेंडर 503 का था.दिल्ली में बिना सब्सिडी वाला सिलेंडर 853 का आएगा.बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर का बाजार भाव 1028.5 रुपये है.मार्च 2024 में रसोई गैस का सिलेंडर 100 रुपये सस्ता हुआ था.
इस पूरी व्यवस्था में सबसे ज्यादा हिस्सा टैक्स का है,जो केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाया जाता है. खास बात यह है कि SAED का सारा पैसा केंद्र सरकार के पास जाता है और इसे राज्यों के साथ शेयर नहीं किया जाता,जबकि बेसिक एक्साइज ड्यूटी साझा होती है.
पिछले वर्षों में केंद्र सरकार ने कई बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर कीमतों से लाभ उठाया है. नवंबर 2014 और जनवरी 2016 के बीच,केंद्र ने 9 बार ड्यूटी बढ़ाई जिससे भारी राजस्व आया,भले ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल सस्ता हो गया हो.
अब भले ही सरकार कहे कि उपभोक्ता पर बोझ नहीं पड़ेगा,लेकिन वास्तविकता यही है कि पेट्रोल और डीजल के दाम का बड़ा हिस्सा सरकार की जेब में टैक्स के रूप में जाता है. आम आदमी की जेब से हर लीटर पर करीब 40% तक की कटौती सिर्फ टैक्स के रूप में होती है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर टैक्स में कुछ राहत दी जाए,तो ईंधन की कीमतें कम हो सकती हैं,जिससे महंगाई पर भी नियंत्रण होगा. लेकिन सरकार का तर्क है कि यह राजस्व इंफ्रास्ट्रक्चर और सब्सिडी जैसे जरूरी क्षेत्रों में खर्च होता है.
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