क्या बजट 2024 पर लोकसभा चुनाव का असर हावी रहा? इन घोषणाओं से समझें

Jul 24, 2024 IDOPRESS

पीएम नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के पहले बजट को बहुत से विश्लेषक बहुत अच्छा बता रहे हैं.

नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले बजट में हाल के लोकसभा चुनाव की स्पष्ट छाप दिखी. इस चुनाव में भाजपा अपने दम पर बहुमत हासिल करने में विफल रही और सरकार बनाने के लिए उसे सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ा. नीतीश कुमार के बिहार और चंद्रबाबू नायडू के आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा न देकर बजट का बड़ा हिस्सा दिया गया है. इस बजट में देश के युवाओं के लिए रोजगार पर भी साफ तौर पर फोकस दिखता है. सभी क्षेत्रों में और निजी कंपनियों में इंटर्नशिप के अवसर देकर सरकार संकेत दे रही है. सरकार डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के माध्यम से नई भर्तियों को 15,000 रुपये तक एक महीने का वेतन भी प्रदान कर रही है.

युवाओं की चिंता

यह सौदा नियोक्ताओं (नौकरी देने वालों) के लिए भी फायदेमंद है. भविष्य निधि भुगतान (पीएफ) के उनके हिस्से पर सब्सिडी देकर सरकार ने कंपनियों को भी खुश करने की कोशिश की है. वित्त मंत्री ने कहा कि इस परियोजना के तहत एक साल में एक करोड़ लोगों को नौकरियां मिलेंगी,जिससे यह स्पष्ट हो गया कि भाजपा बेरोजगारी और युवाओं की चिंता को अपने कमजोर प्रदर्शन के प्रमुख कारणों में से एक मानती है.

मध्यम वर्ग को राहत

न्यू इनकम टैक्स रिजीम में स्लैब पर फिर से काम करके और मानक कटौती को ₹ 50,000 से बढ़ाकर ₹ 75,000 करके अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का भी प्रयास किया जा रहा है. यह अकेले कर्मचारियों के हाथों में अतिरिक्त 17,500 प्रदान कर सकता है,जिससे खपत और मांग बढ़ेगी. पेंशनभोगियों के लिए पारिवारिक पेंशन पर कटौती ₹ 15,000 से बढ़ाकर ₹ 25,000 कर दी गई है.

इन पर टैक्स में कमी

सेलफोन और चार्जर,कैंसर की दवाओं,समुद्री भोजन,चमड़ा और सोने पर सीमा शुल्क में कटौती के साथ अन्य क्षेत्रों में भी कुछ राहत है. कई सालों के बाद सरकार ने तंबाकू पर टैक्स नहीं बढ़ाया है. निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करते हुए कहा,"सीमा शुल्क के लिए मेरे प्रस्तावों का उद्देश्य घरेलू विनिर्माण का समर्थन करना,स्थानीय मूल्य संवर्धन को गहरा करना,निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देना और आम जनता और उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए कराधान को सरल बनाना है."

अधूरे पड़े हैं काम

बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और लोगों के हाथों में खर्च योग्य आय की कमी ने अर्थव्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया है और बड़ी परियोजनाएं अधूरी पड़ी हैं या कम उपयोग में हैं. एक उदाहरण बुनियादी ढांचे का होगा,जिसके लिए बहुत कम खरीदार हैं. निवेश कम हो गया है और श्रम बाजार कमजोर हो गया है. लाखों लोग कम-उत्पादक नौकरियों को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.


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