बांग्लादेश में हुए प्रदर्शन में अभी तक 110 से ज्यादा लोगों की मौत की खबर है
नई दिल्ली:
बांग्लादेश बीते कई दिनों से आरक्षण की 'आग' में झुलस रहा है. अभी तक बांग्लादेश के अलग-अलग हिस्सों में भड़की हिंसा में 110 से ज्यादा लोगों की मौत की खबर है जबकि बड़ी संख्या में लोग गंभीर रूप से घायल भी हैं. स्थिति को बिगड़ा देख बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने पूरे देश में कर्फ्यू लगाने का ऐलान किया है. साथ ही सेना को भी मोर्चा संभालने के लिए कह दिया गया है. आपको बता दें कि प्रदर्शनकारी सरकारी नौकरी में आरक्षण की मांग को लेकर सड़कों पर हैं.
बांग्लादेश में प्रदर्शन और हिंसा की मुख्य वजह सरकारी नौकरी में आरक्षण की मांग और उसका विरोध करना है. प्रदर्शनकारियों का एक गुट चाहता है कि सरकारी नौकरी में 1971 में हुई आजादी की लड़ाई में शामिल लोगों के वंशजों को मिल रहे आरक्षण को जारी रखा जाए. जबकि एक धड़ा ऐसा है जो सरकारी नौकरी में इस तरह के आरक्षण को जारी रखने के खिलाफ है. उनका मानना है कि इस आरक्षण को खत्म कर देना चाहिए. इसी वजह से बांग्लादेश में लगातार हिंसा हो रही है.चलिए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर बांग्लादेश में सरकारी नौकरी के तहत आरक्षण का ये पूरा गणित है क्या ?
कोर्ट ने फिर आरक्षण दिए जाने की बात कही थी
आपको बता दें कि सन 2018 में आरक्षण रद्द किए जाने के खिलाफ फैसला बांग्लादेश में रिजर्वेशन का विरोध लंबे अरसे से हो रहा है. सन 2018 में देश भर में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे,जिसके बाद सरकार ने उच्च श्रेणी की नौकरियों में आरक्षण रद्द कर दिया था. इस साल पांच जून को बांग्लादेश हाईकोर्ट ने आरक्षण को लेकर एक याचिका पर फैसला सुनाया. कोर्ट ने सन 2018 में सरकार के आरक्षण रद्द करने के सर्कुलर को अवैध बताया. कोर्ट के इस फैसले से स्वाभाविक रूप से सरकारी नौकरियों में आरक्षण फिर से लागू हो जाएगा.
इसके पीछे की कहानी कुछ ऐसी है कि सन 1971 में बांग्लादेश का मुक्ति संग्राम हुआ था. उस दौरान पाकिस्तानी सेना तब पूर्वी पाकिस्तान कहलाने वाले बांग्लादेश के लोगों पर भारी अत्याचार कर रही थी. तब पाकिस्तान ने बांग्लादेश में ईस्ट पाकिस्तानी वालेंटियर फोर्स बनाई थी. कट्टरपंथी इस्लामवादियों द्वारा समर्थित पाकिस्तान के सशस्त्र बलों ने स्वतंत्रता संग्राम को दबाने और लोगों को आतंकित करने के लिए तीन मुख्य मिलिशिया बनाए थे- रजाकार,अल-बद्र और अल-शम्स. पाकिस्तान सशस्त्र बलों के समर्थन से इन मिलिशिया समूहों ने बंगाल में नरसंहार किए और बंगालियों के खिलाफ बलात्कार,प्रताड़ना,हत्या जैसी जघन्य वारदातें की थीं. वे पृथक बांग्लादेश के गठन के विरोधी थे.
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